– धान की फसल में पेनीकल माइटस मकड़ी एवं कीट नियंत्रण के लिए दी गई तकनीकी सलाह
– लगातार धान की फसल लेने से भी बढ़ता है पेनिकल माइटस का प्रकोप
– किसानों को फसल विविधीकरण अपनाने के लिए दी गई सलाह
– पेस्टीसाइड्स स्पाइरोमेसिफेन, क्लोरफेनपायर तथा कवकनाशी हेक्साकोनाजोल, प्रोपिकोनाजोल का उचित मात्रा में छिड़काव करने का दिया गया परामर्श
राजनांदगांव । कलेक्टर संजय अग्रवाल के समक्ष राजनांदगांव विकासखंड के ग्राम घुमका के कृषकों द्वारा फसल में कीटप्रकोप के संबंध में प्राप्त शिकायत पर तत्काल संज्ञान लिया गया। कलेक्टर संजय अग्रवाल के निर्देशानुसार उप संचालक कृषि नागेश्वर लाल पाण्डेय द्वारा ग्राम घुमका के कृषकों के फसल का निरीक्षण करने के लिए डायग्नोस्टिक टीम गठित की गई। गठित डायग्नोस्टिक टीम में सहायक संचालक कृषि डॉ. वीरेन्द्र अनंत, कीट वैज्ञानिक कृषि महाविद्यालय सुरगी डॉ. मनोज चन्द्राकर, सहायक संचालक कृषि संजय राय, शस्य वैज्ञानिक कृषि विज्ञान केन्द्र सुरगी मनीष सिंह, कृषि विकास अधिकारी अविनाश दुबे, ग्राम कृषि विस्तार अधिकारी घुमका श्री भरत लाल उईके शामिल थे।
डायग्नोस्टिक टीम द्वारा ग्राम घुमका पहुंचकर कृषकों के धान फसल का निरीक्षण कर कीट नियंत्रण के लिए तकनीकी सलाह दी गई। टीम द्वारा कृषक श्रीमती ठगिया बाई साहू के धान फसल खेत का निरीक्षण किया गया। जिसमें भूरा माहू के प्रकोप से आर्थिक क्षति स्तर से अधिक पाई गई। कृषक मोहेन्द्र सिन्हा, केदार वर्मा एवं श्री दीपक वर्मा के स्वर्णा मासूरी धान का निरीक्षण किया गया। जिसमें मुख्य रूप से पेनीकल माइटस (मकड़ी), तना छेदक, भूरा माहू, शीथ ब्लाईट एवं ब्लास्ट, कीट पतंगे एवं बीमारियों के प्रकोप से क्षति पाई गई। ग्राम घुमका के ग्रामीणों ने बताया कि बालीचुहरी खार, गांवखार, महरूमबाट खार, बड़े तरीया खार, मौहारी खार, डुमराही खार एवं भटगांवबाट खार में कीट पतंगे एवं अन्य बीमारियों से मासूरी धान की फसल को नुकसान हुआ है।
सहायक संचालक कृषि डॉ. वीरेन्द्र अनंत द्वारा निरीक्षण के दौरान किसानों के खेत में हैण्ड लेंस की सहायता से पेनीकल माइटस (मकड़ी) की पहचान की गई एवं धान फसल का नमूना लिया गया। धान फसल के नमूना का कृषि महाविद्यालय सुरगी के प्रयोगशाला में माइक्रोस्कोप की सहायता से जांच की गई और पेनीकल माइट की स्पष्ट रूप से पहचान की गई। टीम द्वारा खेतों के मुआयना के बाद ग्राम पंचायत भवन घुमका में सरपंच, जनपद सदस्य, जनप्रतिनिधियों एवं ग्रामीणों की उपस्थिति में विस्तार पूर्वक चर्चा की गई और धान फसल में लगने वाले कीट व्याधी बीमारियों की जानकारी दी गई। किसानों को फसल विविधीकरण अपनाने प्रेरित किया गया। पौध रोग एवं वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. नितिन कुमार तुर्रे द्वारा धान में लगने वाली बीमारियों एवं रबी फसल गेहूं, मटर, चना, मक्का की खेती की तैयारी से लेकर महत्वपूर्ण बीमारियों की रोकथाम के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई। कीट वैज्ञानिक डॉ. मनोज चन्द्राकर द्वारा धान फसल में लगने वाले कीट व्याधी के बारे में बताया।
सहायक संचालक कृषि डॉ. वीरेन्द्र अनंत ने बताया कि पेनिकल माइटस मकड़ी सूक्ष्म अष्टपादी (आठ पैर) वाले जीव है। इसका आकार 0.2 से 1 मिमी, शरीर पारदर्शी धूसर क्रीम रंग का होता है। पूरा जीवन चक्र 10 से 13 दिन का होता है। अनुकूल परिस्थितियां पेनिकल माइट 25.5 से 27.5 सेमी तापमान व 80 प्रतिशत से 90 प्रतिशत आर्दता यानी अधिक तापमान व कम बारिश में बढ़ती है। लगातार धान की फसल लेने से भी इसे बढ़वार देता है। उन्होंने बताया कि पेनिकल माइटस मुख्य धान के पत्ती के भीतर लीफ शीथ से रस चूसती है। जिससे लीफ शीथ, बदरंग भूरा हो जाना, पत्तियों में छोटे भूरे धब्बे बनना, दाने कत्थई व दूध भराव रहित होकर पोचे या बदरा रह जाते है। बालियों के दाने तोते की चोंच जैसा आकार ले लेते है, जिसे पैरट बीकिंग कहते हैं। पेनिकल माइट के नुकसान वाली जगह पर कीट आघात से फफूंद विकसित हो जाता है, जिससे बीमारी होती है। इसके प्रबंधन व नियंत्रण के लिए उर्वरकों (विशेषकर नत्रजन उर्वरकों) का संतुलित उपयोग करें। सही फसल चक्र विशेषकर दलहनी एवं तिलहनी फसलों के साथ पेनिकल माइट नियंत्रण में प्रभावी है। प्रभावी निगरानी करें, खासकर लीफ शीथ को खोलकर देखें।
यह माइट धान पौधों के शीथ के अंदर छिपा रहता है, इसलिए उसका रासायनिक उपचार कठिन होता है, लेकिन कुछ पेस्टीसाइड्स में माइटीसाइड्स के गुण होते है, जिसका उपयोग कर सकते हैं। जैसे-स्पाइरोमेसिफेन 240 एससी का 250 मिली प्रति एकड़ या क्लोरफेनपायर 10 एससी का 150-200 मिली प्रति एकड़ छिड़काव करें। साथ ही कवकनाशी जैसे- हेक्साकोनाजोल 5 प्रतिशत ईसी को 1000 मिली या प्रोपिकोनाजोल 25 प्रतिशत ईसी का 200 मिली एकड़ की दर से छिड़काव करें।