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मुसीबत में मौका

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विश्वव्यापी महामारी के भय और मार्च से जारी लॉकडाउन से पस्त अर्थव्यवस्था में प्राणवायु संचार करने की दिशा में प्रधानमंत्री द्वारा घोषित बीस लाख करोड़ रुपये का पैकेज नि:संदेह उम्मीद जगाने वाला है। नि:संदेह संकट बड़ा है और बड़ा उपचार ही पटरी से उतरी अर्थव्यवस्था को पटरी पर ला सकता था, लेकिन पैकेज इतना बड़ा होगा, इसकी उम्मीद तो आर्थिक जगत के पंडितों को भी नहीं थी। देश की जीडीपी का दस प्रतिशत पैकेज एक बड़ा कदम है जो कि जर्मनी-अमेरिका के पैकेज के करीब और ब्रिटेन, इटली, फ्रांस व चीन के पैकेज से बड़ा है। यह बात अलग है कि इस पैकेज में विगत में दिये गये पौने दो लाख करोड़ के केंद्र सरकार के पैकेज और केंद्रीय बैंक द्वारा दी गई राहत भी शामिल है, जो कुल दस लाख करोड़ के करीब बैठती है। बहरहाल, चौथे चरण के नये रूप में आने वाले लॉकडाउन की भी घोषणा हो गई है और यह भी तय हो गया कि कोरोना से लड़ाई के साथ ही आर्थिक प्राथमिकताओं से कोई समझौता नहीं होगा। साथ ही यह भी तय हो गया कि वैश्वीकरण के आर्थिक सुधारों का दौर अब खत्म हो गया है। मोदी सरकार ने सत्ता में आने के छह साल बाद आर्थिक सुधारों का नया दौर शुरू करके ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ का शंखनाद कर दिया है। ‘लोकल को वोकल’ करने के आह्वान में इस मंशा को समझा जा सकता है। बेरोजगारी की भयावह दर को कम करने का दूसरा विकल्प हो भी नहीं सकता। स्वदेशी अभियान बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन में सक्षम होगा। इस अभियान में शुरुआत की पहली कड़ी में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने कुटीर, सूक्ष्म, मध्यम और लघु उद्योगों के लिए तीन लाख करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा की। यह लाभ 45 लाख एमएसएमई को मिलेगा। उनके आकार और निवेश की सीमाओं को विस्तार देकर छोटे उद्योगों को गति दी गई। नये पैकेज को छह बिंदुओं के जरिये एमएसएमई को आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास किया गया। दरअसल, बुधवार को आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिये कुटीर, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों के लिए राहत पैकेज की घोषणा से सरकार ने साफ कर दिया है कि सरकार आत्मनिर्भर भारत संकल्प में छोटे उद्योगों व बड़े रोजगार क्षेत्र को अपनी प्राथमिकता मानती है।
बहरहाल, प्रधानमंत्री ने बड़े संकट को तरक्की की राह में तब्दील करने का मंत्र दे दिया है। आर्थिक आंकड़ों की बाजीगीरी से इतर अभी कहना कठिन है कि पैकेज के लिए पैसा कहां से आयेगा और कितनी रकम किसको मिलेगी, मगर इस घोषणा ने देश में उत्साह का संचार अवश्य किया है। यह यक्ष प्रश्न है कि सरकार धन जुटाने को नये नोट छापती है, नये कर्ज लेती है या फिर पहले से तय खर्च को रोककर पैकेज के लिए धन जुटाती है, लेकिन यह तय है कि यह पैकेज सभी वर्गों की उम्मीद से ज्यादा है। उद्योग जगत भी दस से 15 लाख करोड़ की मांग कर रहा था। यह घोषणा उससे बढक़र है। नि:संदेह देश में अब नकदी संकट खत्म होगा। करोड़ों लोगों के रोजगार पर जो संकट मंडरा रहा है, उस पर किसी हद तक रोक लगाने में मदद मिलेगी। कोरोना संकट के चलते पूरी दुनिया में जहां अर्थव्यवस्था में संरक्षणवाद का, जो दौर शुरू हुआ, भारत उसी दिशा में आगे बढ़ा है। देश ने महसूस किया है कि लॉकडाउन के दौरान संकट से उबरने में स्थानीय उत्पादों ने जो महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, उसे आगे बढ़ाया जाये। स्वदेशी उत्पाद बनाकर आत्मनिर्भर बना जाये। कारोबार बढ़ाने के लिए बड़े सुधार किये जायें। डिमांड सप्लाई चेन को टेक्नोलॉजी के जरिये विस्तार दिया जाये। किसान और ग्रामीण भारत को आगे बढ़ाया जाये। यानी कुल मिलाकर आत्मनिर्भर भारत का आगे का मार्ग प्रशस्त किया जाये। हाल में कुछ राज्यों में किये गये श्रम सुधारों को इसी दिशा में बढ़ाये गये कदम के रूप में देखा जाना चाहिए। लेकिन देखना यह भी जरूरी होगा कि जान देकर भी घर जाने को आतुर कामगारों के दु:ख कैसे दूर होंगे। उनके बिना उद्योग और दैनिक जीवन का पहिया कैसे चलेगा। आर्थिक विषमता की खाई सरकारी आंकड़ों से इतर कैसे पाटी जायेगी। इसके बावजूद कि कोरोना महामारी का संकट अभी टला नहीं है।

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