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नोटबंदी के बाद ‘कोरोना’ दूसरी कसौटी : अब प्रतिष्ठा का नहीं ‘प्राण’ का प्रश्न

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इधर ही कोई हमारी ओर आ रहा है? चम्पक ने बाबूलाल से कहा। बाबूलाल ने देखा – उसे कोई जाना पहिचाना चेहरा लगा। उसने कहा मित्र, ये कहीं वो तो नहीं, जिन्हे कब्रिस्तान में देखा था। लेकिन, वह कैसे हो सकता है? वह झुकी कमर और लकड़ी के टेके से चलता था। लेकिन यह तो बांका जवान है और हाथ में हंटर भी है। अब वो व्यक्ति पास आ गया था। आते ही बोला- क्या घूर-घूर कर देख रहे हो चम्पक – बाबूलाल। मैं वही हूं, जिसे तुमने कब्रिस्तान में देखा था। मैं तो मर ही गया था। किन्तु, पिछले जनम के पापों के कारण खुदा ने जहन्नुम में भी नहीं रखा। वे बोले-मेरा अवतार लेने का समय नहीं आया, अभी टाईम है। किन्तु, अब मैं तुझे वापस पृथ्वी पर भेज रहा हूं। तेरा नाम कोरोना रहेगा। वहां तेरा काम सज्जनों का उद्धार करना और दुष्टों का नाश करने का रहेगा।
अब तो चम्पक और बाबूलाल की उसका नाम सुनते ही सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई थी। वे 6 फीट उससे दूर हो गए। जेब में रखे मास्क को निकाला और पहिना। फिर बड़े डरते-डरते हुवे पूछा – कोरोना काका, जैसे कि, कहावत है- ‘वक्त पड़े बांका….. तो गधे को कहे काका’ की तर्ज पर पूछा- आप तो दुष्टों को कम और सज्जनों को ज्यादा मार रहे हो? एक ही लाठी से गधे और घोड़ो दोनों को हांक रहे हो? काका बोले- ठीक कह रहे हो। मैं बेकाबू हो गया हूं। चम्पक हम आफिस जाते हैं तो पुलिस डण्डे मारती है। घर में रहते हैं तो औरत घर काम में लगा देती है। देवी-देवताओं को आपने मंदिरों में क्वारेंटाईन कर दिया। मजहब स्थानों में भी आप ने ताला जड़ दिया। अस्पतालों में बेड कम पड़ गए। श्मशानों में लकडिय़ां कम पड़ गई। शव वाहनों का टोटा हो गया। एम्बुलेंस की कीमतें बढ़ गई। आक्सीजन सिलेण्डर के लाले पड़ गए। वैक्सीन की किल्लतें है। लॉकडाउन ने सडक़ंे सुनी कर दी। व्यापार-उद्योग ठण्डे पड़ गए। अर्थतंत्र ऐसा बैठा है कि उठने का नाम ही नहीं ले रहा है।
चम्पक मन ही मन में बड़बड़ाया- कही खुदा ने बंदर के हाथ में उस्तुरा तो नहीं दे दिया? उसने कहा-कोरोना काका – आपने भारत सहित पूरी दुनिया में ऐसा रायता फैलाया है कि, सरकार में ऊंचे आसनों पर बैठे नेताओं का दिमाग ‘दही’ कर दिया। उन कद्दावर दिग्गज नेताओं के चेहरों पर पहली मर्तबे कई सालों बाद उदासी छायी है, हताशा से घिरे हैं। निराश चेहरे के माथे पर चिन्ताग्रस्त रेखाएं हैं। कोरोना काका- आपने आम व खास, सज्जन व दुर्जन आदमियों के चेहरों पर गैरकानूनी कब्जा कर रखा है। उनकी प्रतिष्ठा पर बट्टा लग गया है। आप के कारण ‘‘हेल्थ इमरजेन्सी’’ वाले हालात हैं। सुप्रीम कोर्ट ने भी यही कहा है।
कोरोना काका- आप का जब पहली मरतबे आगमन हुआ था, तभी हाहाकार मचा था। तभी शीर्ष नेता ने कहा था- हम कोरोना से जंग जीतने युद्ध स्तर पर काम कर रहे हैं।
ये बरखुरदार चुनाव बीच में आ गए। बड़ी-बड़ी आम सभाएं करनी पड़ी। हजारों ने लम्बी रैलियों में हिस्सा लिया। चुनाव जीतने लाखों करोड़ों फूंक दिए। कुंभ मेले में लाखों ने गंगा में डूबकी लगाई। इसी समय, कोरोना काका, आप ने दूसरा प्रहार कर दिया। अब तो दिन में तारे दिखाई दे रहे हैं। सरकार जब आग लगी तब कुंआ खोदने जा रही है। नोटबंदी के बाद यह दूसरी कसौटी आपातकाल जैसी है। नोटबंदी को तो लोगों ने जैसे-तैसे, गिरते-पड़ते बर्दाश्त कर लिया। किन्तु, अब कहर बरपाते हुवे, अट्टहास लिए रौद्र रूप के जो दर्शन कोरोना काका आप ने कराए हैं, उससे तो लोगों की जानें ही जा रही हैं और अभी न जाने कितने ‘काल के गाल’ में समाएंगे? अब प्रतिष्ठा का नहीं, प्राण का प्रश्न है। ‘‘टेस्ट को बेस्ट’’ कहा जा रहा है। किन्तु, लोग टेस्ट करवाने से घबरा रहें हैं। अगर आप ‘काका’ पाजिटिव आ गए तो अस्पतालों में बेड नहीं है। डॉक्टर लूटने तैयार बैठे हैं। चिन्ता तो इस बात की है कि पाजिटिव अछुत हो गया है। आप की मुहब्बत से लोगों का जीवन नर्क बन गया है और मौत भी बदत्तर हो गई है। न मुंह में तुलसी, न गंगाजल। अंतिम यात्रा में चार कंधे भी नहीं। कोरोना काका, अब बहुत हो गया। दया करो। वापस प्रस्थान करो। मानव समाज ने बहुत भूलें, बहुत गलतियां की हैं, उन्हें क्षमा करो।
सोने-चांदी की तस्करी और जब्ती से संस्कारधानी की चमक बढ़ी
ओ मेरी सोना रे सोना…. गुनगुनाता चम्पक गुफ्तगु करने बैठा। बाबूलाल ने स्माइल देते हुवे कहा- क्या तुझे सोना नसीब नहीं हुआ? वह बोला- नहीं डीयर, नींद तो मैने भरपूर ली। आजकल काम ही नहीं। खाओ, पियो, सोवो और मित्रों के हालचाल जानो। रहा ‘सोना’, तो बाबूलाल मोहिनी ज्वेलर्स में रेड कर रेवेन्यू इन्टेलिजन्स डायरेक्टोरेट ने 18 किलो सोना और हजारों टन में चांदी पकड़ी। यह मोहिनी ज्वेलर्स वाला तो यार कलयुगी मोहिनी अवतार वाला निकला। इसे छुपा रूस्तम ही कहना चाहिए। कई किलो में सोना और टनों में चांदी का भारी भरकम स्टाक दर्शाता है कि संस्कारधानी ने कीमती धातुओं की तस्करी में भी बहुत तरक्की की है। यूं भी हमारा शहर सर्वगुण सम्पन्न है। यहां ब्याज-बट्टों का भी करोड़ों का कारोबार है। बड़े दूर-दूर तक कई खोखे, कई पेटियां जाती हैं। ब्याजखोरों में व्यापारियों की जमात के साथ नेताओं की जमात भी शामिल है। चर्चा है कि मोहिनी ज्वेलर्स के कस्टमर भी उच्चाधिकारी और नेता थे। आखिर देश का अधिकांश अवैध माल-रूपया भी इन्ही के पास है। किलो की मात्रा में सोना-चांदी बड़े टैक्स चोर और काली कमाई वाले ही खरीद सकते है।
लेकिन, चम्पक किलो-टनों में सोना-चांदी बड़ी सुरक्षित प्लानिंग से शहर में तस्करी के जरिए पहुंचता रहा और स्थानीय पुलिस नावाकिफ रही, इसे क्या कहें? नावाकिफ रही पुलिस ऐसा कहना वाजिब तो नहीं है। अधिकांश ‘‘पैटर्न क्राइम’’ से पुलिस वाकिफ रहती है। लेकिन पुलिस कर्तव्य से ज्यादा राजनीतिज्ञों के समान राजनीति करने में ही अपनी भलाई मानती है।
महंगाई ने दिक्कतों को और बढ़ाया
महंगाई ने गरीबों और मीडिल क्लास के परिवारों का जीना हराम कर दिया है। बेरोजगारी और लॉकडाउन से हताशा की फीलिंग कर रहे लोगों को दूसरी ओर कोरोना ने भयभीत कर रखा है। रिक्शे वाले, आटो वाले, टी-स्टाल, कुल्फी-आईसक्रीम-बर्फ, चाट-गुपचुप वाले भी लॉकडाउन की मार से अधमरे हो गए हैं। ये ही दयनीय हालात बेचारे सेलुन वाले, दर्जियों, मोचियों, धोबियों, ठेले वालों, हमालों, मजदूरों आदि की है। बेकारी का सामना कर रहे इन लोगों की कोई फिक्र ही नहीं कर रहा है।
बाजार खुला रहे और ग्राहकी न हो, ऐेसे दृश्य तो कई बार देखने को मिले हैं किन्तु बाजार ही बंद हो तो यह कहावत लागू पड़ती है कि ‘‘न रहे बांस और न बजे बांसुरी’। जीवन जरूरी चीजों को तरसते लोग जब बाजार चंद घण्टों के लिए खुलता भी है तो खरीददारी करने हुजूम उमड़ पड़ता है। यहां फिर कोरोना की एैसी-तैसी हो जाती है। जमाखोरों और मुनाफाखोरों के लिए यह संकट, यह आपदा किसी वरदान से कम नहीं है। मुनाफाखोरी करने में तो सरकार भी पीछे नहीं है। पांच राज्यों के चुनाव निपटते ही पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ा दिए। खाद्य पदार्थों के दाम बढ़ाने का एक और अवसर व्यापारियों को मिला है। पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ी तो परिवहन महंगा होगा। परिवहन महंगा होगा तो सभी चीज-वस्तुओं के दाम बढ़ेंगे। यूं भी क्रय शक्ति घटने से जनता चिन्ता में डूबी है। भारी महंगाई की वजह से दिक्कतों का सामना करें भी तो कैसे? ये हालात हैं।
चिकित्सा का बाजारीकरण
कोरोना महामारी का कष्ट झेल रहे बीमारों के परिवारजन उसके निदान के लिए पूरे विश्वास के साथ अस्पताल की ओर रूख करते हैं। लेकिन, पैसे बनाने के चक्कर में डॉक्टर ही मरीज की जिन्दगी से खिलवाड़ करने लगे तो? चिकित्सा का बाजारीकरण पराकाष्ठा पर पहुंच चुका है। कोरोना संबंधी टेस्टों ने तो पैथालाजिकल लैब के संचालकों और टेस्ट लिखने वाले डॉक्टरों के वारे-न्यारे कर दिए हैं। डॉक्टरों को ऐसे महामारी के दौरान बिन जरूरी टेस्टों को भी लिखने से कोई परहेज नहीं है। डॉक्टरों के द्वारा मनमाने टेस्ट कराना, इमोशनली मरीजों से खेलना और उन्हें डरा कर टेस्ट कराने भेजना सामान्य हो गया है। जितना ज्यादा टेस्ट, उतना ज्यादा कमीशन।
वास्तव में स्वास्थ्य का क्षेत्र सबसे बड़ा मुनाफे वाला व्यापार हो गया है। दु:ख इस बात का है कि मानवता को ताक पर रखकर यह मुनाफे वाला क्षेत्र अब लूट और शोषण का क्षेत्र बन गया है। या यह कहें कि लूट का जरिया बन गया है। विडम्बना यह कि, हर कोई स्वस्थ रहना चाहता है और इसके लिए जितने चाहे पैसे खर्च करने को तैयार रहता है। शहर में निजी नर्सिंग होम व निजी अस्पतालों से लेकर बहुआयामी विशेषता रखने वाले मल्टी स्पेशलिटी हास्पिटल्स की भी संख्या कम नहीं है। लेकिन, इस प्रकार के अस्पताल इलाज के लिए कम, मरीजों को लूटने व उन्हें कंगाल करने की नीयत से ज्यादा खुले हैं। डॉक्टरों का मकसद केवल पैसा कमाना ही रह गया है, चाहे वह सही इलाज कर के या गलत इलाज करके ही क्यों न वसूला जाए? स्वास्थ्य व चिकित्सा विभाग के अधिकारियों के अधिकार क्षेत्र में नियंत्रण का दायरा तो बड़ा है, लेकिन इस ओर से वे मुंह फेरे रहते हंै।
महिमा कुमार ‘‘विश्वास’’ का नग्मा गौर फरमाएं –
अजीब सी उब शामिल हो गई है
रोज जीने में
पलों को दिन में, दिनों को काटकर
जीना महीने में
महज मायूसियां जागती हैं
कैसी ये आहट पर
हजारों उलझनों के घोंसले
लटके हैं चौखट पर
अचानक सब की सब ये यह
चुप्पियां एक साथ पिघली हैं
उम्मीदें सब सिमट कर हाथ
बन जाने को मचली हैं
मेरे कमरे के सन्नाटे ने
अंगड़ाई सी तोड़ी है
मेरी खामोशियों ने
एक नग्मा गुनगुनाया है-
‘आना है तो आ राह में कुछ फेर नहीं है
भगवान के घर देर है, अंधेर नहीं है’।
दीपक बुद्धदेव

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