Home समाचार मदनवाड़ा मुठभेड़ में आईपीएस मुकेश गुप्ता को सुप्रीम कोर्ट से राहत

मदनवाड़ा मुठभेड़ में आईपीएस मुकेश गुप्ता को सुप्रीम कोर्ट से राहत

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बिलासपुर। मदनवाड़ा जांच आयोग के फैसले पर आईपीएस मुकेश गुप्ता को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने आयोग की फाइडिंग और अनुशंसा पर रोक लगा दी है। आयोग की जांच रिपोर्ट में दोषी करार देने पर तत्कालीन आईजी मुकेश गुप्ता ने पहले हाईकोर्ट और अब सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है, जिस पर उनके पक्ष में स्टे दिया गया है। मदनवाड़ा में नक्सली-पुलिस मुठभेड़ में राजनांदगांव के तत्कालीन एसपी समेत 29 जवान शहीद हुए थे।
आईपीएस मुकेश गुप्ता ने शंभू नाथ श्रीवास्तव जांच आयोग के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। मामला अभी हाईकोर्ट में चल रहा है। हालांकि, हाईकोर्ट ने उन्हें अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया था। जिसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट महेश जेठमलानी, एडवोकेट विवेक शर्मा और रवि शर्मा के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। इसमें उन्होंने अंतरिम राहत देने के लिए आग्रह किया है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार कर लिया है।
क्या था पूरा मामला
राजनांदगांव के मदनवाड़ा गांव के पास 12 जुलाई 2009 को नक्सलियों ने पुलिस पार्टी पर हमला कर दिया था। इस हमले में तत्कालीन एसपी विनोद चौबे समेत 29 जवान शहीद हो गए थे। प्रदेश में हुए इस बड़े हमले की जांच के लिए रिटायर्ड जस्टिस शंभू नाथ श्रीवास्तव की अध्यक्षता में न्यायिक जांच आयोग का गठन किया गया था। करीब छह माह पहले जांच आयोग ने अपनी रिपोर्ट राज्य शासन को दे दी है, जिसमें दुर्ग के तत्कालीन ढ्ढत्र और निलंबित मुकेश गुप्ता की भूमिका संदिग्ध पाई गई है और उन्हें नक्सली हमले के बाद स्थिति पर नियंत्रण नहीं रख पाने के लिए दोषी माना गया है। इसमें मुकेश गुप्ता पर और आरोप भी लगाए गए हैं।
हाईकोर्ट से नहीं मिली थी राहत
आयोग की जांच रिपोर्ट को मुकेश गुप्ता ने अधिवक्ता गैरी मुखोपाध्याय के माध्यम से हाईकोर्ट में चुनौती दी है। उनकी तरफ से सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट महेश जेठमलानी ने बीते 12 अप्रैल को बहस की थी। कहा गया था कि जांच आयोग ने एक पक्षीय फैसला दिया है, जो संविधान के खिलाफ है। याचिकाकर्ता को सुनवाई का मौका दिए बिना और उनका पक्ष जाने बिना ही फैसला दे दिया है। जो न्याय संगत नहीं है। याचिका में उन्होंने अंतरिम राहत के तौर पर आयोग की जांच रिपोर्ट पर रोक लगाने की मांग की गई थी। जस्टिस सामंत ने सभी पक्षों को सुनने के बाद अंतरिम आवेदन को खारिज कर दिया था।

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