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फिर संस्कार और संवेदना जगा गई रामायण

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विचार सरिता
डॉ. योगेन्द्र पाण्डेय
रामायण के दूरदर्शन पर पुन: प्रसारण ने भी वही इतिहास रचा है। रावण की मृत्यु, राम की अयोध्या वापसी और उनके राज्याभिषेक के साथ ही रामायण की मूल कथा समाप्त हुई। साथ ही कल से उत्तर रामायण का आरंभ भी है। अनेक रामायणों का अध्ययन करने के बाद और मूल रूप से तुलसीकृत रामचरितमानस को आधार बनाते हुए रामानंद सागर ने भव्य, शोधपरक, सशक्त व सफल प्रस्तुति दी है। रामायण की कथा को घर-घर पहुंचाया है। नई पीढ़ी को इस रामायण के पुन: प्रसारण से राम का मर्यादा पुरुषोत्तम और वचनों का पालन करने वाला रूप देखने को मिला। सीता ने एक आदर्श स्त्री की मर्यादा, संस्कारों और कर्तव्यपरायणता का परिचय दिया। सीता जी के तेज और एक तिनके की ओट में ही उनका महानतम चरित्र महाशक्तिशाली रावण पर भारी पड़ता था। भरत का भातृप्रेम, लक्ष्मण के हर सुख दुख में साए की तरह अपने भाई के साथ रहना, हनुमान जी का अपार बल और प्रभु राम के प्रति उनकी निष्ठा और भक्ति को देखकर हमारे परिवारों मे इस पीढ़ी के बच्चे पूछने लगे कि क्या ऐसे आदर्श चरित्र सचमुच में हुआ करते हैं? सुग्रीव और विभीषण से मित्रता और राम द्वारा अपने वचन के अनुसार उन्हें अपने-अपने राज्य का राजा बना देने के उपक्रम, जामवंत के धीर गंभीर वचन और उपयोगी सुझाव, रावण की सभा में अंगद द्वारा जमा कर रखे गए अपने पांव, हनुमान द्वारा राम का नाम लेकर समुद्र पार करना और युद्ध भूमि में मृतप्राय पड़े लक्ष्मण के लिए संजीवनी बूटी समेत पूरा पहाड़ उठाकर लाने जैसे प्रसंग और दृश्य दर्शकों को चमत्कृत कर गए। रामायण धारावाहिक में शिष्टाचार की भाषा में विभिन्न पात्र आपस में बात करते थे, उसने भी दर्शकों में अपने गहरा प्रभाव छोड़ा है। तात, माता, भ्राता, आर्यपुत्र जैसे आदरयुक्त संबोधन और विनम्रतापूर्ण भाषा में उनका वार्तालाप शायद आज के युग में बड़े अनौपचारिक, रूखे, शिष्टाचार विहीन और अति व्यवहारिक होते जा रहे लोगों के दैनिक व्यवहार में हमेशा मृदुता व शिष्टाचार की सीख देते रहेंगे। अरुण गोविल राम के रूप में और दीपिका चिखालिया ने सीता के रूप में अविस्मरणीय अभिनय किया है। दारा सिंह ने हनुमान की भूमिका में मानो भगवान हनुमान का ही प्रतिरूप छोटे पर्दे पर साकार कर दिया। रावण, कुम्भकर्ण और मेघनाद जैसे नकारात्मक और खलनायक पात्रों ने भी अपने प्रभावशाली व्यक्तित्व व बेजोड़ अभिनय तथा मूल चरित्र की गंभीरता के साथ ईमानदारी बरत कर इन पात्रों को भी अमर कर दिया है। और अयोध्या में रहने वाले पात्रों की क्या बात की जाए। राजा दशरथ, माताएं, मंत्रीगण, निषादराज और मिथिला नरेश जनक आदि सभी अपने अपने चरित्र में आदर्श और संपूर्ण नजर आते हैं। रामायण में हर स्तर पर त्याग, बलिदान और नैतिकता की भावना दिखाई देती है। अन्याय और असत्य के विरुद्ध न्याय और सत्य की रक्षा के लिए राम का संघर्ष ही इस अमर कृति को कालजयी बनाता है। पिता के वचन का पालन करने के लिए 14 वर्षों के लिए आज्ञाकारी राम के वन जाने के एक क्षण में ही लिए गए निर्णय ने लोगों को द्रवित कर दिया। दर्शकों को राम का संघर्ष खुद अपने जीवन में घटित होता लगता है, क्योंकि एक साधारण मनुष्य भी इसी तरह कई बार अपने रोजमर्रा के जीवन में परिस्थितियों के हाथों संघर्ष करने को विवश होता है। इसलिए राम सबको अपने से लगते हैं। यही कारण है कि रामायण सीरियल और इसके सार्वभौमिक संदेश को लोगों ने धर्म, जाति, भाषा और क्षेत्र की सीमाओं से परे जाकर देखा और सराहा। सचमुच रामानंद सागर ने वाल्मीकि से शुरू हुई ऋषि परंपरा में आधुनिक युग ऋषि के रूप में अपना अमर योगदान किया है, तमाम सीमाओं के बाद भी।





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