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कोरोना, मंदी के बीच ट्रम्प की विवादित नीतियां

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कोरोना संकट से कैसे निपटा जाए, इस बाबत पूरी दुनिया ने जंग छेड़ दी है। भारत में कोरोना की महामारी नियंत्रित है। युरोपियन राष्ट्र, अमेरिका, स्पेन, ब्रिटेन आदि में कोरोना के केसेज बढ़ रहे हैं। कोरोना के उद्भव और उसका फैलाव रहस्य बना है। यह वैश्विक महामारी कितनों को मारेगी, आर्थिक रूप से कितनी बदहाली होगी? इसे लेकर विश्व के सभी राष्ट्र प्रमुख चिन्तीत हैं। आर्थिक मंदी गहराते ही जा रही है। आर्थिक प्रवाह को गतिशील करना सबसे बड़ी चुनौती बनी है। इन सभी के बीच अमेरिकन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की नीति चर्चा में है। ट्रम्प के निर्णय और नीतियों में विचित्रता तो रहती ही है। सर्वप्रथम तो उन्होंने हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन के लिए भारत को धमकाया। फिर उक्त दवा मिलने लगी तब भारत और नरेन्द्र मोदी के गुणगान करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी थी।
आज कोरोना से सर्वाधिक प्रभावित अमेरिका ही है। अमेरिका कोरोना वाइरस में इतनी बुरी तरह फंसा है कि बौखलाहट में उसके कदम भी विवादित हो रहे हैं। प्रत्यक्ष में उन्होंने कोरोना को हल्के में लिया हुआ है। वे लाकडाउन को खोलने का प्रयास कर रहे हैं। उनके समर्थक विभिन्न राज्यों में लाकडाउन हटाने रैलियां निकाल रहे है। सत्य यह है कि अमेरिका में कोरोना का इतना बड़ा आउट-बैक हुआ, उसे ट्रम्प सरकार की असफलता के रूप में देखा जा रहा है। अमेरिका में कोरोना के प्रति जागृति फैलाने में उदासिनता को जवाबदार माना जा रहा है। ट्रम्प ने कहा था अमेरिकन घर में रहने के आदी नहीं हैं। वे घर में ही बंद रहेंगे तो देा की इकानामी नेस्तनाबुद हो जाएगी। वे अमेरिका को पूर्व की भांति आर्थिक क्षेत्र में चमकता देखना चाहते हैं।
राजनैतिक पंडितों का मानना है कि डोनाल्ड ट्रम्प के क्रियाकलाप के पीछे का कारण यह है कि अमेरिका में आगामी नवम्बर माह में चुनाव हैं। वे अपनी दूसरी टर्म में भी पुन: किसी भी हिसाब से चुनाव जीत कर प्रेसिडेन्ट बनना चाहते हैं। इसके लिए उन्होंने अभी से एड़ीचोटी का जोर लगाना शुरू कर दिया है। किन्तु, अब उनके सामने सबसे बड़ी अड़चन यह कोरोना वाइरस है। इसके कारण न वे चुनाव प्रचार करने की स्थिति में है और न ही रैलियां निकाल पा रहे हैं। अमेेरिकनो को खुश करने वे नाना प्रकार के उपायों की आजमाइस कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, ट्रम्प ने फिर एक मरतबे इमीग्रेंटस को निशाने पर लेते हुवे कहा है कि अमेरिका में अब बाहर से आने वालों पर प्रतिबंध लगाना है। 21 अप्रैल को उन्होंने ट्वीट करके कहा था कि अदृश्य दुश्मन कोरोना द्वारा किए गए हमले और अमेरिका के नागरिकों की नौकरियों को बचाने के लिए मैं एक एक्जीक्युटिव आदेश पर दस्तखत करने वाला हूँ, जिसके द्वारा अमेरिका में हो रहे इमीग्रेशन पर अब रोक लगायी जावेगी। अमेरिकी मीडिया में कहा जा रहा है कि ट्रम्प अपने कथन पर शीघ्र अमल कर सकते हैं। अधिकृत रूप से जिस दिन यह आदेश जारी होगा तब किसी भी विदेशी को अमेरिका में काम करने की अथवा तो वहां रहने की अनुमति नहीं मिलेगी। यह व्यवस्था कब तक रहेगी, इस बाबत फिलहाल कुछ नहीं कहा जा सकता। ट्रम्प का कहना है कि कोरोना वाइरस के कारण उत्पन्न परिस्थितियों को ध्यान में रख कर यह निर्णय लिया गया है। अमेरिकी प्रेसिडेन्ट ने कोरोना के फैलाव को लक्ष्य में रख कर इमिग्रेन्टस की बात की है। अमेरिका में अब बाहर से किसी विदेशी नागरिक को नौकरी करने की मनाही है, साथ ही वहां निवास करने की भी मनाही है। प्रेसिडेन्ट ट्रम्प की इस घोषणा के साथ ही जो कानूनन अमेरिका जाने के लिए अधिकृत हैं, वे भी अब अमेरिका नहीं जा सकेंगे। जिनके पास दस सालों के लिए भी विजा है, उन विजिटरों को भी फिर से अमेरिका सरकार का आर्डर लेना होगा। इसी के साथ, जो लोग अमेरिका के एच-1 बी विजा हासिल कर नौकरी करना चाहते होंगे, उन्हें भी अमेरिका जाने नहीं मिलेगा। अमेरिकी कम्पनियां ऐसे विदेशियों को जब आफर नहीं करेगी। भारतीयों पर भी ये आदेश लागू है।
प्रेसिडेन्ट ट्रम्प अपने मतदाताओं को खुश करने के ध्येय से ही इस प्रकार की घोषणाएं कर रहे हैं। किन्तु, अमेरिका कम्पनियां और खुद अमेरिकी सरकार जानती है कि इमीग्रेन्ट्स के बगैर अमेरिका की कठिनाइयों में इजाफा होगा। वर्तमान में डोनाल्ड ट्रम्प इसलिए भी चर्चित हैं कि उन्होंने डब्ल्यु एच ओ को दी जा रही सहायता पर ब्रेक लगा दिया है। उधर चीन के प्रभाव में वृद्धि हो रही है। युनो में भी उसका प्रभाव बढ़ा है। ए वास्तविकता यह भी। कि डब्ल्यु एच ओ के बजट में 15 प्रतिशत याने 400 मिलीयन डालर का हिस्सा अमेरिका देता है। चीन में कोरोना की शुरूवात और उसके फैलाव को लेकर अमेरिका चीन को दोषी मानता है। साथ ही अमेरिका ने डब्ल्यू एच ओ पर भी अनेक सवाल उठाए हैं। पहला सवाल तो यह कि डब्ल्यु एच ओ ने कोरोना बाबत की महत्वपूर्ण जानकारी छिपायी है। चीन ने अमेरिका के इस निर्णय की आलोचना की है। युनो के महामंत्री एन्टोनीयों ने भी इस कदम को दुर्भाग्यजनक बनाया है। उन्होंने कहा है कि डब्ल्यु एच. ओ. की भूमिका कोरोना में महत्वपूर्ण हैं। आज जब पूरी दुनिया कोरोना संकट से जुझ रही है, तब उक्त वैश्विक संस्था का फण्ड रोकना एक दुखद घटना है।

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