कोरोना संक्रमण पर रोक लगाने देश के प्रत्येक राज्य विशेष सावधानी बरत रहे हैं। किन्तु, कोरोना के सामने की जंग में राज्यों के बीच एक -जुटता का अभाव दिख रहा है। सभी राज्य अपनी रणनीति बना कर इस महामारी का सामना कर रहे हैं। भारत में दिन प्रतिदिन कोरोना के मरीजों की संख्या में वृद्धि हो रही है, मरने वालों की संख्या भी बढ़ रही है। वैश्विक स्तर पर भी कोरोना पाजिटिव के केसेज 30 लाख को पार गए हैं। मौत का आंकड़ा दो लाख पार कर चुका है। अमेरिका कोरोना की रेस में सबसे आगे है। वहां 10 लाख से अधिक पाजिटिव के मामले हैं और मृत्यु का आंकड़ा 60 हजार को लांघ रहा है। बताते हैं, अमेरिका की इस दयनीय स्थिति का कारण वहां की केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच परस्पर तालमेल नहीं है। फलस्वरूप, वहां कोरोना अनियंत्रित हो गया है। भारत की बात करें तो यहां भी 28 राज्यों का अस्तित्व है। इसके अलावा, केन्द्र शासित 8 राज्य हैं। अमेरिका सदृश्य ही यहां भी केन्द्र व राज्यों के बीच ट्युनिंग का अभाव है। कई राज्य तो अपने पड़ौसी राज्यों के साथ भी एकजुट नहीं दिखाई दे रहे है। राज्यों-राज्यों के बीच मतभेद है। विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों के जो बयान आ रहे हैं, उससे भी इस बात को समझा जा सकता है। भारत के अनुकूल यह अच्छा है कि गत 24 मार्च को जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश भर में लाक डाउन जारी करने की घोषणा की तब तमाम राज्यों ने इसका पालन किया था। 14 अप्र्रैल को लाकडाउन-दो की घोषणा की गई थी, जिस पर भी अमल अभी तक हो रहा है। किन्तु, अब विभिन्न राज्यों से निकलने वाले सूर अलग-अलग हंै। वर्तमान में सर्वाधिक चर्चा पश्चिम बंगाल और उसकी मुख्यमंत्री ममता बेनर्जी की है। जिन पर आरोप लगा है कि वे कोरोना के मरीजों की संख्या कम करके बता रही हैं। दूसरा सवाल यह उठा है कि, एक राज्य से दूसरे राज्य से लोगों को लाने और ले जाया जाए या नहीं? लाकडाउन के कारण लाखों लोग देश के विभिन्न क्षेत्रों में सैकड़ों किलोमीटर की दूरी में फंसे हैं। दिल्ली में रहे मजदूरों को हरियाणा जाना है। छत्तीसगढ़ के मजदूरों की बड़ी तादात महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, नई दिल्ली आदि राज्यों में फंसे हैं, जिन्हें छत्तीसगढ़ वापस आना है। राजस्थान के कोटा में भी विभिन्न राज्यों के हजारों विद्यार्थियों के हालात बहुत दयनीय हैं। बिहार के मजदूर देश भर में फैले हैं। वे सभी अपने राज्य बिहार आना चाहते हैं। प्रश्न यह है कि लाकडाउन के कारण प्रत्येक राज्यों ने अपनी सीमाओं को सील कर दिया है। इस कारण, एक राज्य से दूसरे राज्य में जाने पर पाबंदी है। प्रत्येक राज्यों ने इससे संबंधित आदेश जारी किए हैं। सभी राज्यों की सरकारों को भय है कि अन्य राज्यों में कोरोना पाजिटिव के मरीजों के प्रवेश से उनके राज्यों में भी कोरोना महामारी खानाखराबी करेगी। इस तरह की परिस्थिति निर्मित होने से प्रत्येक राज्यों-राज्यों के बीच एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाए जा रहे हैं। उदाहरण के लिए सर्वप्रथम उत्तरप्रदेश सरकार ने राजस्थान के कोटा में फंसे उनके सैकड़ों विद्यार्थियों को विशेष बसों को भेजकर बुलवा लिया। उसके बाद मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात सहित अन्य राज्यों ने भी कोटा में रहे विद्यार्थियों को विशेष बसों के जरिए वापस बुलवाया है। किन्तु, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने राज्य के मजदूरों व विद्यार्थियों के लिए उक्त व्यवस्था, सुविधाएं मुहैया कराने से इंकार कर दिया है। उसके इस रवैये से बिहार में ही मुख्यमंत्री विवादित हो गए हैं। झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी कह दिया है कि हमारे पास ऐसी सुविधाएं नहीं है कि अन्य राज्यों में फंसे विद्यार्थियों को हम वापस ला सके। इसी तरह का विवाद दिल्ली और हरियाणा के बीज चल रहा है। हरियाणा ने दिल्ली से जुड़ी तमाम सीमाओं को सील कर दिया है। फलस्वरूप, दिल्ली में हरियाणा से आने वाली तमाम जरूरी चीजों पर रोक लग गई है। हरियाणा के गृहमंत्री ने आदेश जारी किया है। कि उनके राज्य के जो मजदूर दिल्ली में हैं, उन्हें हम वापस अपने राज्य में नहीं आने देंगे। प्राय: सभी राज्यों को यह भय है कि अन्य राज्यों में फंसे उनके मजदूर व विद्यार्थी कोरोना कैरियर भी हो सकते हैं। इसी तरह की लड़ाई कर्नाटक और केरल, केरल और तमिलनाडू, तमिलनाडू और आन्ध्रप्र्रदेश के मध्य चल रही है। जिसमें एक राज्य में से दूसरे राज्य में जाने पर प्रतिबंध लगाया गया है। फलस्वरूप अन्य राज्यों में फंसे लोगों को भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। परन्तु, राज्य की सरकारें ऐसे मुसीबत में फंसे लोगों को कोई तवज्जों नहीं दे रही है। जिसका ही परिणाम है कि देश में राज्यों-राज्यों के बीच तनाव बढ़ते ही जा रहा है, जो अपने आप में चिन्ताजनक है।