Home सम्पादकीय / विचार हम तुम एक कमरे में बंद हो वाले ऋषि जानदार अभिनेता थे

हम तुम एक कमरे में बंद हो वाले ऋषि जानदार अभिनेता थे

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ल्युकेमिया केन्सर से ग्रस्त एक जिन्दादिल व अपने बेबाक व्यवहार के लिए सदैव चर्चित रहे प्रसिद्ध अभिनेता ऋषि कपूर की विदाई से फिल्मी संसार में खालिपा छा गया है। ऋषि के पहले चरित्र अभिनय में अपनी विशिष्ट छाप छोडऩे वाले इरफान खान का भी नहीं रहना, उनके प्रशंसकों को गमख्वार कर गया।
देश में कोरोना का भय चरम सीमा पर रहने से अन्य जानलेवा बीमारियों की चर्चा नेपथ्य में चली गई है। जिस केन्सर रोग से औसतन प्रतिदिन 1300 व्यक्तियों की जाने चली जाती हैं, उस किलर केन्सर से बड़ा आज कोरोना हो गया है। अपनी आयु के 67 वें वर्ष तक ऋषि कपूर अभिनय के क्षेत्र में सक्रिय रहे। अभी दो साल पहले ही उन्होंने मन्टो फिल्म की थी। उनके प्रशंसकों के दिलों में ऋषि अमिट छाप छोडऩे में सफल रहे हैं। क्यों कि 1970 से 1990 तक सतत् 20 सालों तक ऋषि कपूर ने युवा दिलों पर राज किया है। लवर बाय की उनकी इमेज ने युवा दिलों को प्रभावित किया है।
आज का युवा कलाकार अपने प्रोफेशन व कैरियर को लेकर बहुत जागरूक है। वह हमेशा शरीर से अपने को फिट रखता है। किन्तु, ऋषि की पेन्ट पेट तक चढ़ी रहती थी और उसे वे रंगीन जर्सी व स्वेटर से ढके फिल्मी पर्दे पर दिखाई देते थे। उनके मासुम चेहरे का आकर्षण जबर्दस्त था। उस पर उनकी नीली आंखे युवतियों को दिवाना बना देती थी।
ग्रेट शो मैन राजकपूर ने मेरा नाम जोकर बनाई थी, जिसमें उन्होंने अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया था, किन्तु फिल्म नहीं चली और राजकपूर कर्जदार बन गए। उल्लेखनीय कि उस समय तक अनेक हिट फिल्म दे चुके राजकपूर अपने बड़े परिवार के साथ एक किराए के मकान में ही रहते थे। 1973 में उन्होंने फिल्म बाबी बनायी और उसमें हीरो के रूप में उन्होंने बेटे ऋषि को लिया और हिरोईन के रूप में उन्होंने डिम्पल कापडिय़ा को लिया। बाबी फिल्म सिनेमागृहों में लगते ही सुपर डुपर हिट हो गई थी। ऋषि का चार्मिंग चेहरा युवतियों के दिलों में छा गया था। वह समय सिंगल थिएटर का था। आज के जैसे मल्टीप्लेक्स नहीं थे। विभिन्न शहरों में ‘‘बाबी’’ महिनों चली। दर्शकों ने उस समय ब्लेक में टिकटें खरीद कर बाबी देखी थी, ऐसा माहोल उस समय था। फिर तो रातोंरात ऋषि की कीमत उछल गयी और उन्हें साईन करने उस समय निर्माता लाखों देने तैयार हो गए थे। कहते हैं, उस समय अमिताभ बच्चन को फिल्म शोले में काम करने केवल एक लाख मिले थे।
उसके बाद, अभिनय जगत में ऋषि ने पीछे मुडक़र नहीं देखा। 1970 से 1990 के दशकों में की गई फिल्मों में लैला मजनू, कर्ज, रफ्फूचक्कर, हिना, चांदनी, सागर, अमर-अकबर एन्थोनी, कुली, जहरीला इंसान, दीवाना, दामिनी जैसी फिल्मों में उनके अभिनय की बहुत प्रशंसा हुई थी। ऋषि पर सैकड़ों यादगार गीत फिल्माए गए हैं। संगीत प्रिय श्रोता आज भी उन गीतों को सुनकर झुम उठते हंै। अधेड़ उम्र में पहुंचे ऋषि का फिल्म दौर भी बहुत सफल रहा। अलग-अलग चरित्र भूमिका निभाते हुवे ऋषि कपूर ने हम-तुम, लव आजकल, अग्निपथ, 102 नाटआऊट, कपूर एण्ड सन्स जैसी फिल्मों ने भी उन्हें यादगार बना दिया। अग्निपथ में ऋतिक रोशन हीरो थे और विलेन के रोल में लड़कियों के दलाल के रूप में रऊफ लाला के नाम से ऋषि कपूर ने जानदार अभिनय किया था।
ऋषि कपूर ने 2017 में अपनी आत्मकथा लिखी थी। जिसका नाम है- ‘‘खुल्लमखुला’’। जिसमें उन्होंने अपनी पुस्तक के नाम को सार्थक करते हुवे खुल्लमखुल्ला चौकाने वाली सत्य घटनाओं का जिक्र किया था। ऋषि ने अपनी आत्मकथा में स्वीकार किया था कि बाबी रिलीज हुई तब उन्हें बेस्ट एक्टर का एवार्ड मिला था, जिसे पाने उन्होंने उस समय 30 हजार की रिश्वत दी थी। जब कि प्रतिस्पर्धी के रूप में फिल्म जंजीर के हीरो अमिताभ बच्चन थे। ऐसी तो अनेक चौकाने वाली घटनाओं का जिक्र ऋषि ने अपनी आत्मकथा में किया है। ऋषि खुले दिमाग और खुशमिजाज वाले व्यक्ति थे। उनकी अंतिम इच्छा अपने बेटे रणबीर कपूर का विवाह देखना था। किन्तु, यह इच्छा अधुरी रह गई। जब कि, रणबीर आज 35 वर्ष के हैं।
एक शानदार-जानदार अभिनेता के रूप में ऋषि कपूर को अनेक सालों तक उनके चाहक याद करेंगे। कपूर खानदान का एक और दीपक बूझ गया। फिल्मी दुनिया में कपूर खानदान का योगदान आज भी समाज को मिल रहा है, यह गौरतलब है।

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