सहकारिता की पवित्र भावना और खास कर किसानों को आर्थिक लाभ, सहुलियत प्रदान करने वाली सहकारी बैंकें अब रिजर्व बैंक आफ इंडिया के अधीनस्थ संचालित होगी। केन्द्र के कैबिनेट के द्वारा इस आशय का अध्यादेश लाया गया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में आयोजित कैबिनेट बैठक में निर्णीत देश की प्रत्येक सहकारी बैंकें अब रिजर्व बैंक के निरीक्षण में कार्य करेगी। वर्तमान में देश भर में 1482 शहरी सहकारी बेंकें है। जो अब आर.बी.आई. अधीनस्थ संचालित होगी। इसमें ग्रामीण सहकारी बैंकें और 58 बहुउद्देशीय सहकारी बैंके भी शामिल हैं। इस परिप्रेक्ष्य में यह कि आर.बी.आई. के तमाम नियम अब सहकारी बैंकों पर लागू पड़ेंगे।
इसमें दो मत नहीं कि देश में सहकारी बैंकों का अपना विशिष्ट महत्व है। शहरी व ग्रामीण जनों तक बैंक प्रणाली की सुविधाएं पहुंचाने में सहकारी बैंकों का बड़ा योगदान है। किसानों को लोन मुहैया कराने में सहकारी बैंकें अग्रणी हैं। सहकारी बैंको का लक्ष्य अधिकाधिक धन का लाभ उठाने का नहीं रहता। उनका प्राथमिक लक्ष्य अपने सदस्यों और किसान वर्ग को सर्वोत्तम सेवा उपलब्ध कराना होता है। उनका पंजीयन सहकारी समिति अधिनियम अंतर्गत किया जाता है। बैंकिंग विनियम 1949 के साथ ही बैंकिंग कानून अधिनियम 1965 अंतर्गत सहकारी बैंकें आती हैं। किन्तु, पिछले अनेक सालों में सिलसिलेवार सहकारी बैंकों में भ्रष्टाचार हिमालय आकार का हुआ है। इस कारण, उसकी कार्यप्रणाली पर स्वाभाविक रूप से सवाल उठते हैं।
जम्मू कश्मीर, दिल्ली, राजस्थान, झारखण्ड, महाराष्ट्र, गुजरात, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ सहित देश के अन्य राज्यों में एक के बाद एक सामने आए सहकारी बैंकों के भ्रष्टाचार के कारण खातेधारकों की जमा पूंजी जोखिम में हैं। इससे आम ग्राहक के मन में संदेह होना स्वाभाविक है। रिजर्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार बीते पांच सालों में इन बैंकों में भ्रष्टाचार के लगभग 1500 मामले सामने आए हैं। 2015-16 में इस तरह के 187 मामले प्रकाश में आए थे। उसके पहले 2014-15 में यही संख्या 478 थी। 2018-19 के दौरान केवल शहरी सहकारी बैंकों के प्रकरणों के संदर्भ में प्रकरण दर्ज किए गए थे।
रिजर्व बैंक के ही रिपोर्ट में दर्ज है कि देश भर में कुल 1,544 शहरी सहकारी बैंकों में कुल 4.84 लाख करोड़ रूपए जमा थे। जिसमें से सबसे अधिक महाराष्ट्र की 496 बैंकों में 3 लाख करोड़ रूपए जमा थे। उसके बाद उससे कम राशि गुजरात व कर्नाटक में जमा है। किन्तु, इन बैंकों के अधीनस्थ कई बैंकों ने नियमों को बलाए ताक रख बेतहाशा लोन प्रदान की थी। उसके बाद, ऋण वसूली हेतु कोई कार्यवाही नहीं की थी। फलस्वरूप, अनेक खातेधारकों की जमापूंजी डूबत खाते में चली गई। ऋण वसूल करने बैंक के अध्यक्ष व संचालकों को गिरफ्तार भी किया गया था, किन्तु जिसका अपेक्षित प्रतिसाद नहीं मिला था। जिसका एक कारण यह भी था कि उस समय सहकारी बैंकों मेंं रिजर्व बैंक का कोई प्रभावी दखल नहीं था।
इन सब नकारात्मक परिणामों के मद्देनजर केन्द्र सरकार ने सहकारी बैंकों को सुधारने के लिए रिजर्व बैंक के भूतपूर्व डिप्टी गवर्नर आर. गांधी की अध्यक्षता में कमेटी का गठन किया था। इस कमेटी ने सरकार को सुझाव दिया था कि सहकारी बैंको को नियंत्रित करने आर.बी.आई. को अधिकारों से सुसज्ज करना होगा। डिफाल्टर सहकारी बैंको को बंद करने और उसे धन प्रवाहित प्रदान करने जैसे निर्णय लेने के लिए केन्द्रीय बैंक निर्णय लें। शहरी सहकारी बैंकें भी अपनी ग्रामीण बैंकों को स्वेच्छा से धन प्रवाहित करना चाहती हैं तो उन्हें केन्द्रीय बैंक के सभी मापदण्डों का पालन करना अनिवार्य होगा। उसी के बाद उसके द्वारा लिया गया निर्णय मान्य होगा। किन्तु, सरकार ने उक्त गठित कमेटी के सुझावों पर ध्यान नहीं दिया था। वास्तव में अनेक सहकारी बैंकें प्रभावशाली वी.आई.पीज लोगों के हाथों में थी। इसी कारण, किसी प्रकार कोई निर्णय नहीं लिया गया था।
अब मोदी सरकार ने निर्णय लिया है कि सहकारी बैंकों का नियमन और अंकेक्षण आर.बी. आई. के नियमानुसार किया जावेगा। अगर कोई बैंक आर्थिक संकट में आ जाती है तब उसके बोर्ड पर आर.बी.आई. की नजर रहेगी। इससे नि:संदेह सहकारी बैंकों के खाताधारकों की जमा पूंजी सुरक्षित रहेगी। सरकार द्वारा लिया गया निर्णय स्वागतेय है।