प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आम जनता के लिए जनधन योजना की शुरूवात की थी। देश के प्रत्येक नागरिकों तक बैंक एकाउंट की सुविधा पहुंचे, इसके लिए जनधन योजना लाई गयी है। इस योजनान्तर्गत प्रत्येक घर से कम से कम एक सदस्य का खाता खोला गया है। योजना के तहत यह भी कि जनधन खाते के साथ डेबिट कार्ड तथा एक लाख रूपए का बीमा भी दिया जाता है। यह भी प्रावधान है कि जिन्होंने समयावधि में खाता खोला है, उन्हें एक लाख रूपए तक एक्सीडेन्ट कवर, 30 हजार का लाइफ इन्श्योरेंस भी दिया जाना है। स्मरणीय है कि जन धन खाते में कम से कम राशि भी रखना जरूरी नहीं है और इसमें हर माह पांच हजार रूपए ओवर ड्राफ्ट की भी सुविधा दी गई है। इसी के साथ, इन्श्योरेंस, पेंशन प्राड्क्टस की भी सुविधा दी गई है।
किन्तु, प्रतीत होता है आम जनता तक केन्द्र की जन धन योजना का सुनियोजित अपेक्षित प्रचार नहीं हुआ है। गरीबों के कल्याण के लिए शुरू हुई यह योजना अभी तक सार्थकता का अमलीजामा नहीं पहिन सकी है। क्यों कि गरीबी यथावत है और गरीबों की तादात बढ़ी है। इसकी पोल वर्तमान में कोरोना संकट में गरीबों, दिव्यांगों व महिलाओं के लिए पांच-पांच सौ रूपए उनके खाते में केन्द्र ने जमा कराए हैं। अखबारों और टी.वी. चैनलों के जरिए यह जानकारी देश की प्रत्येक गांवों तक पहुंच गयी थी। फलस्वरूप, भूखमर्री और भारी धनाभाव के कारण बैंकों में महिलाओं की भीड़ टूट पड़ी है। कोरोना से बचाव के एहतियात में सोश्यल डिस्टेसिंग याने सामाजिक दूरी को प्राथमिकता दी गई है। किन्तु, पांच सौ रूपए पाने बैंकों के गेट्स में सोश्यल डिस्टेंस व लाकडाउन की धज्जियां उड़ गई। उत्तरप्रदेश के एक शहर में पुलिस ने सख्ती बरतते हुए सोश्यल डिस्टेटिंग के नियमों का उल्लंघन करने के जुर्म में खुली जेल में भेज दिया था। हैरानी की बात यह कि पुलिस ने अपने वाहन में भेड़-बकरियों के समान ठंूस कर खुली जेल में ले गए और शाम तक उन्हें भी छोड़ दिया। यहां पुलिस ने स्वयं सोश्यल डिस्टेसिंग का अनुपालन नहीं करवाया और महिलाओं को वाहन में पर्याप्त स्थान नहीं होने के बावजुद जबरन ठूंसा था। कहा जाता है, गरीबी यह सबसे बड़ा पाप है और सबसे बड़ा गुनाह। पैसों के बगैर आदमी की बुद्धि क्षीण हो जाती है। इसलिए गरीबी को अभिशाप भी कहा जाता है। पांच सौ रूपए के लिए महिलाओं ने अपनी जिन्दगी को जोखिम में डाल दिया।
जन धन खाते से पांच सौ रूपए पाने अनेक बैंकों में लम्बी लम्बी कतारे लग रही हैं। ऐसे समय 2009 के प्रथम मोदी कार्यकाल में लगे नोटबंदी के दौरान बैंकों के सामने लगी लम्बी कतारों की यादें ताजा हो जाती है। खैर, बैंको के माध्यम से ही सारा लेन देन होना चाहिए, इसके लिए अनेक उपायों पर अमल भी हो रहा है। किन्तु, खास गरीबों के सहायतार्थ बनी जन धन योजना वास्तव में वर्तमान हालात में गरीबों के स्वाभिमान को तार तार कर रही है। साथ ही इसकी भी पुष्टि हो गई कि देश में बेहद गरीबी है और उनके कल्याण के लिए बनी विभिन्न योजनाएं निरर्थक साबित हो रही है।