Home सम्पादकीय / विचार शराब दुकानों में लाक डाउन के नियम व शर्तों का सरेआम उल्लंघन

शराब दुकानों में लाक डाउन के नियम व शर्तों का सरेआम उल्लंघन

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कोरोना महामारी का संकट बढ़ते ही जा रहा है। कोरोना संक्रमण को रोकने सरकार तमाम उपायों पर काम कर रही है। लेकिन, इसी बीच पिछले तीन दिनों से देश भर में खुली शराब दुकानों के बाहर मद्य प्रेमियों का हुजूम जो उमड़ा है, वह कोरोना योद्धाओं के अब तक के सारे प्रयासों पर पानी फेरने वाला है। शराब खरीदने लगी लम्बी लाइनों में खड़ी भीड़ बेकाबू हो गई है। लाकडाउन-3 में शुरू हुआ शराब के व्यापार ने बीते दिनों में जो भयानक तस्वीर दिखाई है, उस पर से सवाल उठा है कि क्या शराब सरकार नहीं बेचेगी तो क्या उनकी आर्थिक स्थिति डांवाडोल हो जाएगी? शराब की दुकानों में शारीरिक दूरी के नियम की सरेआम धज्जियां उड़ रही है। अनेक स्थानों में भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस ने लाठियां भी भांजी है। सर्वत्र जहां शराब दुकाने खुली हैं, वहां दुकान खुलने के पहले ही लम्बी लाईनें लग जाती हैं। फिलहाल, शराब और शराबियों के समाचार सुर्खियों में हैं। नियम था जिन्होंने मास्क नहीं पहना होगा, उन्हें शराब नहीं मिलेगी। किन्तु, इस नियम का भी पालन नहीं हुआ। कई लोगों का चिन्तन था कि, इतनी बड़ी तादात में लोग बाग शराब अधिकातम मात्रा में क्यों खरीदते होंगे? सरकार के कोरोना संक्रमण के दौरान शराब बेचने से एक बात की पुष्टि तो हो ही गई कि सरकार को लोगों के स्वास्थ्य से अधिक अपनी कमाई की चिन्ता है। शराब दुकानदारों के लिए भी दुकान खोलने की जो शर्तें रखी गई थी, उसमें केवल सीलबंद शराब की बोतलें ही बेचनी है। किन्तु, कई स्थानों में सील टूटी शराब की बोतलें मिली और बेची भी गई। एक समय में ग्राहकों को अधिकतम 4 बोतलेंं बेचना है। दुकान के सामने एक समय में पांच ग्राहक से ज्यादा ग्राहक नहीं होना चाहिए। दो ग्राहकों के बीच का अन्तर 6 फीट होना चाहिए। इसके लिए बेरिकेट लगाने का प्रावधान है। दुकानदारों को अपने स्टाफ तथा ग्राहकों की थर्मल स्क्रीनिंग कराना है। जिन ग्राहकों को सर्दी , खांसी या बुखार हो, उन्हें दुकान के दायरे में प्रवेश करना मना है। दुकान और उसके आसपास का परिसर हर दो घण्टे में सेनेटराइज करने का प्रावधान है। दुकान मेें आने वाले प्रत्येक ग्राहक के लिए हैन्ड सेनेटाइजर की व्यवस्था रखनी है। यह सभी काम करने के लिए दुकानदार के पास पर्याप्त स्टाफ होना चाहिए। इसमें से एक भी शर्त का पालन किए बिना शराब की अमर्यादित बिक्री हो रही है। तब लाकडाउन यहां हास्यास्पद लगने लगता है और कोरोना को लेकर स्वयं सरकार गंभीर नहीं है, इसका भी पता लगता है।
एक व्यक्ति को परमिट के अनुसार निर्धारित मात्रा में ही शराब देनी है। किन्तु, परमिट देखने की भी फूर्सत यहां कहां है? अनेक स्थानों में लोग थैलियों में भरकर शराब ले गए हैं, उस पर से लगता है कि यह ज्यादा शराब संग्रहण की जावेगी। शराब खरीदने जो अनियंत्रित जमावड़ा हो रहा है, उनमें से कोई व्यक्ति कोरोना से संक्रमित होगा, तब क्या होगा? कोरोना का व्यापक फैलाव होगा, इसमें कोई शंका नहीं है। एक ओर सरकार सोश्यल डिस्टेसिंग रखने पर जोर दे रही है। किराना, दवा, सब्जियों की दुकानों में सोश्यल डिस्टेसिंग का पालन कराने पुलिस सख्ती बर्तती है। किन्तु, विडम्बना कि शराब की दुकानों में पुलिस की उपस्थिति शोभा सदृश्य होती है। अब कोरोना वाइरस को फैलने से रोकने और भीड़ को नियंत्रित करने के लिए कई राज्य सरकारों ने शराब की बोतलों पर ‘‘कोरोना टैक्स’’ का प्रिन्ट लगाना शुरू किया है। कई स्थानों में शराब बेचने की गाइड लाईन का पालन नहीं किया गया, वहां की शराब दुकानों को बंद करवाया गया है। सोश्यल डिस्टेंसिंग की बातें जनता के लिए है, सरकार के लिए नहीं। शराब की बेतहाशा सैकड़ों करोड़ की बिक्री बताती है कि सरकारों के दांत चबाने और दिखाने के अलग-अलग हैं। वर्ष 2019-20 देश के 29 राज्यों को शराब के ऊपर लगाए गए टैक्स से 1,75,205 करोड़ की आय होने का अनुमान है। गत वर्ष यही राशि 1,50,657 करोड़ की थी। देश में केवल गुजरात और बिहार में कानूनी रूप से शराबबंदी है। ये दोनों ही राजस्व का लक्ष्य कैसे पूरा करते होंगे? यह भी अन्य राज्यों को सोचना चाहिए। अब इस कोरोना महामारी के लाकडाउन में शराब की दुकानों के ताले खुलने से कोरोना का संक्रमण बढ़ा है। तब शराबबंदी की चर्चा भी बंद हो गई है, यह भी चकित करने वाली बात है। शराब बिक्री में लक्ष्मण रेखा तो खिंचनी ही चाहिए अन्यथा कोरोना से बचने के तमाम उपाय निरर्थक हो जायेंगे।

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