Home सम्पादकीय / विचार जब जिंदगी की जंग जीत गई नन्ही बिटिया, मिला पुनर्जीवन

जब जिंदगी की जंग जीत गई नन्ही बिटिया, मिला पुनर्जीवन

128
0

हृदय की गंभीर बीमारी डाइलेटेड कार्डियोम्योपेथी से हुई अद्भुत रिकवरी
बिटिया आरूल जब एक साल की थी तब कुछ बोल नही पा रही थी, लेकिन मुझे महसूस हुआ कि कोई बात है जो बता नहीं पा रही है, स्वास्थ्य निरंतर गिर रहा था, वजन भी कम हो गया था। सांस लेने में उसे तकलीफ हो रही थी, लेकिन फिर भी मुस्कुराती थी। डॉक्टर भी ठीक से पता नहीं कर पा रहे थे, कि बीमारी आखिर है क्या? इसी बीच पद्मश्री बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. ए टी दाबके ने परीक्षण के दौरान कहा कि लगता है कि बच्ची को हार्ट में तकलीफ है, हृदय की धडक़न असामान्य है, इको करा के देखते हैं। इको कराने के बाद रिपोर्ट देख कर रामकृष्ण हॉस्पिटल के डॉ. सुमंत शेखर पाधी ने मुझसे कहा कि रिपोर्ट खराब है। बच्ची को डाइलेटेड कार्डियोम्योपेथी नाम की गंभीर बीमारी है, जो लाइलाज है। पूरी रिपार्ट जानकर हमारे तो पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई। इस बीमारी में हृदय पूरे शरीर में रक्त की आपूर्ति नहीं कर पा रहा था। नार्मल बॉडी में हार्ट की पम्पिंग 75 प्रतिशत होती है, जो घटकर 30 प्रतिशत हो गई था। तब तक बच्ची को सांस लेने में तकलीफ बढ़ चुकी थी। उन्होंने कुछ दवाइयां दीं और कहा कि यह दवाइयां जीवन रक्षक दवाइयां है, इन्हें रोज समय पर देना है। उन्होंने कहा कि आप इसे एम्स दिल्ली लेकर चले जायें। पूर्व राज्यपाल श्री शेखर दत्त ने मेरी काफी मदद की, उन्होंने एम्स के डॉक्टर से बात की।
एम्स दिल्ली में इलाज शुरू हुआ, लेकिन वह तकलीफदेह था। हृदय वार्ड में छोटे-बड़े हर तरह के मरीज थे, सबके चेहरों पर निराशा थी। शिशु वार्ड में छोटे-छोटे बच्चों के हाथों में केनुला लगा हुआ था। जब वे अपने घर जा रहे होते थे तब उनके चेहरों पर खुशी होती थी। तब तक मैं यह जान चुकी थी कि मेरी बच्ची का केस बिल्कुल अलग तरह का है। बहुत से टेस्ट किये गए। फिर डॉक्टर ने एक दिन मुझ से कहा कि इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है, आप इसे ले जायें। वहाँ से निकलते ही बच्ची को तेज बुखार आ गया। तब यह समझना मेरे लिए मुश्किल हो रहा था क्या किया जाए? सेना के सेवानिवृत डॉक्टर एस एस भाटिया ने बुखार की दवा दी और इस बीमारी की रिसर्च पढ़ कर कहा कि बच्ची को नमक नहीं देना। हार्ट में अभी तकलीफ है, नमक देना इसके लिए ठीक नहीं है। मैंने उनकी सलाह मानकर नमक देना बंद कर दिया।
दिल्ली से वापसी हुई। मैं फिर से ड्यूटी जाने लगी। इंटरनेट पर इस बीमारी के बारे में रिसर्च पढऩे लगी। यह जानकर कई बार दुखी हो रही थी कि, इसका एकमात्र इलाज हार्ट ट्रांसप्लांट है। इस बीच पूर्व राज्यपाल शेखर दत्त ने मुझसे कहा कि बच्ची को सेब, अंजीर और गुणवत्तापूर्ण भोजन दो। वे हमेशा कहते थे कि एलोपैथी, आयुर्वेदिक और होम्योपैथी सभी विधाओं के उपयोग के बेहतरीन परिणाम हो सकते हैं। मैंने उनकी बातों का अनुकरण किया। इस बीच मैंने रोंडा बर्न की ‘द पावर’ में हेल्थ वाला वाला पार्ट कई बार पढ़ी। जिसमें एक स्थान पर लिखा है। आप बीमार व्यक्ति की मदद कर सकते हैं। बीमार व्यक्ति अपनी जिन भावनाओं द्वारा स्वस्थ होने के लिए स्वयं को प्रेरित कर रहा है, आप उसके परे तो नहीं जा सकते, लेकिन आपकी शक्ति उसे स्वास्थ्य की फ्रीक्वेंसी तक ऊपर उठा सकती है। इसी बीच राजभवन की लाइब्रेरी में डॉ. जॉन एफ डीमार्टिनी की किताब ‘काउंट योर ब्लेसिंग्स, द हीलिंग पावर ऑफ ग्रेटिट्यूड एंड लव’ पढऩे को मिली। हार्ट की बीमारी से ग्रसित रिच डिवास का संघर्ष और ‘आशा का संदेश’ जैसी किताबें मिली।
मैं इस बीमारी के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानना चाहती थी। इंटरनेट पर सर्च के दौरान संयुक्त राज्य अमेरिका की एक बच्ची हन्ना लेन की जानकारी मिली, जिसने इस बीमारी से रिकवरी ली थी। जिसे पढ़ कर मन में उम्मीद जगी कि मेरी बिटिया भी ठीक हो सकती है। मेरे सभी धर्मों के मित्रों ने अलग-अलग रीति से बच्ची के लिये दुआएं की। मेरी माँ हर वक्त मेरा और बेबी का ध्यान रख रही थी। 5 माह बाद डॉक्टर सुमंत शेखर ने कहा कि बच्ची रिवर्स हो रही है। सत्य साईं हॉस्पिटल नया रायपुर में एम्स के डॉक्टर ने भी कहा कि बच्ची का हृदय पुन: ठीक होने के लिये प्रेरित है। 7 माह के बाद रामकृष्ण केयर हॉस्पिटल से वापस आते समय डॉ. शैलेश शर्मा ने मुझसे कहा कि आप ईश्वर में विश्वास करती है, आपकी बच्ची ने पूर्ण रिकवरी लिया है, जो एक अद्भुत चमत्कार है। आप ईश्वर को धन्यवाद दें। उन्होंने मुझे नारायणा हृदयालय में डॉक्टर सुमंत शेखर से भी एक बार चेकअप कराने को कहा। डॉक्टर सुमंत शेखर पाधी ने कहा कि बच्ची को अब किसी दवाई की जरूरत नहीं है।
डॉ. उषा किरण बड़ाईक
उप संचालक, जनसम्पर्क, राजनांदगांव

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here